हेमचन्द्र सकलानी की साहित्यिक यात्रा साहित्य की विभूतियों की जुबानी

Uttarakhand

 देहरादून। प्रसिद्ध साहित्यकार हेमचंद्र सकलानी जी की कविताएं संवेदनशीलता, शालीनता को वक्त की स्मृतियों के साथ खूबसूरती से समेटे हैं। सकलानी जी उन स्वनामजन्य रचनाकारों में हैं जिन्होंने संस्मरण कहानी, देश-विदेश के यात्रावृत और कविताओं की रचना से समकालीन हिंदी साहित्य को समृद्व किया है। हेमचन्द्र सकलानी बहुत समर्थ संवेदनशील और गहरी दृष्टि के रचनाकार हैं। उनकी रचनाधर्मिता विधाओं के वैविध्य में भी साफ साफ दृष्टिगोचर होती है। उनका यात्रा वृत्तांत साहित्य की बहुमूल्य निधि ही नहीं बल्कि धरोहर है। उनके शब्द केवल वैचारिक शब्द चित्र नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता एवं आस्था के प्रतीक भी हैं। उनके यात्रा वृतांतों को पढ़ते सच्चे भारत के दर्शन होते हैं और यहॉं भी सुरम्य प्रकृति, परिवेश, आंचलिक जनजीवन, को जानने-समझने में मदद मिलती है। उनके सृजन में चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अपने संयमित और मर्यादित रूप में अभिव्यक्त हुए मिलते हैं। पर्यटन, देशाटन, तीर्थाटन की दृष्टि से सकलानी जी की रचनाएं बहुत उपयोगी हैं। शब्दावली व वाक्य विन्यास बहुत ही सरल और मोहक है यही पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर करते हैं। उनके यात्रा वृतांत, वृतांत ही नहीं बल्कि विभिन्न शहरों की सभ्यता, संस्कृति, रीति रिवाज, परम्पराओं, इतिहास, भूगोल एवं संग्रहालयों का संग्रह है।

यात्राओं का अपना सुखद अनुभव होता है और इन्हीं यात्रा वृतांतों की बदौलत हम प्राचीन वैभवशाली संस्कृति से रूबरू हो पाते हैं।  उनके बारे में पद्मविभूषण से सम्मानित प्रसिद्ध गीतकार श्री गोपालदास नीरज कहते हैं-सकलानी जी की कविताएं संवेदनशीलता, शालीनता को वक्त की स्मृतियों के साथ खूबसूरती से समेटे हैं। वह कवि होने के साथ एक प्रतिष्ठित कहानीकार, साहित्यकार, बहुआयामी समाज सेवी व्यक्तित्व भी हैं। काव्य का उद्देश्य लोक मंगल है। इस उद्देश्य की पूर्ति, लोक कल्याण के अनेक कार्यों को कार्यान्वित करके कवि ने अपने कविपन का सच्चा प्रमाण प्रस्तुत किया। वह पर्यावरण, प्रदूषण, वृक्षा रोपण आदि विषयों के अतिरिक्त बच्चों के लिए कार्यक्रमों से भी जुड़े हैं, इसके लिए भी उन्हें बार-बार याद किया जाएगा।    पूर्व सदस्य लोक सेवा आयोग तथा पूर्व कुलपति संस्कृत विश्वविद्यालय उत्तराखंड की डॉ सुधा रानी पांडे का मानना है कि श्री हेमचन्द्र सकलानी की सारस्वत जीवन यात्रा का कैनवस अत्यंत विस्तृत है जो कहीं रंगी स्वप्निल कल्पनाओं के पंख पसारे दूर गगन की उड़ान तक पहुॅंचता है और कहीं घूसर रंगों से भरे कठोर यर्थात की खुरदुरी जमीन पर अपने पगचिन्ह स्थापित करते दिखता है। बाल्यपन से ही सुशोभित कल्पनाओं के पंख लगाए उनका मन साहित्य के परिवेश में ही अपनी व्याप्ति पाता विकसित हुआ है। वेदना और निराशा भरी प्रथम कविता से अपनी कलम की जादू बिखेरने वाले हेमचन्द्र सकलानी जी उन स्वनामजन्य रचनाकारों में हैं जिन्होंने संस्मरण कहानी, देश विदेश के यात्रावृत और कविताओं की रचना से समकालीन हिंदी साहित्य को समृद्व किया है। जल विद्युत अभियंता की यांत्रिक दुनिया में सेवारत रहते हुए उनकी कल्पना, साहित्य के अनंत आकाश में ही विचरण करती रही है,और आज भी सेवा निवृति के उपरांत उनकी लेखनी की अविराम यात्रा सतत प्रवाहमान है। हेमचन्द्र सकलानी के बारे में उनकी साहित्य यात्रा के बारे में अल्प शब्दों में कुछ कह पाना कठिन है। देश के प्रायः सभी प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने उनकी अपराजित लेखनी और साहित्य के प्रति प्रशस्ति वचन लिखे हैं। प्रसिद्व संस्कृतविद्व आचार्य सोमदीक्षित ने उनके प्रति सुंदर संस्कृत पंक्तियां लिखी थीं जिनका उल्लेख करना चाहुॅंगी -‘‘मन्येडहं तु रजतमा वर्वते चन्द्र मण्डले किंतु साहित्य सम्प्राप्ते हेमचंद्र तदुच्यते’’ मैं ऐसा मानता हूॅं कि चंडमंडल में रजताआभा विद्यमान रहती है किन्तु साहित्य के साथ संयुक्त हो वह ’हेमचंद्र’ अर्थात स्वार्णाभा युक्त चंद्रमंडल कहलाता है। हेमचंद्र शब्द में सुंदर श्लेष सविधान से सार्थक प्रशस्ति प्रस्तुत की है आचार्य श्री ने। हेमचन्द्र सकलानी की साहित्यात्रा इसी प्रकार अपराजेय क्षणों को बॉंधती नदी की अविरल धारा की भॉंति सतत प्रवाहमान रहे ऐसी मेरी स्वस्ति शुभाषंसा है। श्री चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद का मत है कि सकलानी जी की रचनाओं का अवलोकन करने के बाद कह सकता हूॅं उनमें बौद्धिक प्रमुखता तो है ही अनुभव का असास स्रोत भी है। उनके शब्द केवल वैचारिक शब्द चित्र नहीं जीवन की गुणवत्ता एवं आस्था के प्रतीक भी हैं।     प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखिका डॉ कविता वाचक्नवी कहती हैं सकलानी जी की रचनाओं में सामाजिक चेतना के साथ साथ अपनी विरासतों के प्रति गहरा लगाव दिखाई पड़ता है। जिसका क्षरण उत्तर आधुनिकता के इस दौर में बड़ी तेजी से हो रहा है। काव्य रचना ही नही गद्य लेखन में समान रूप से सक्रीय उत्तराखंड के बहुमुखी प्रतिभावान कलमकार हैं। उनके यात्रा संस्मरणों से गुजरने के बाद कह सकती हूॅं उनके यात्रा-वृत्तों का पहला वैशिश्टच उनके दृश्य-बंधों में निहित इस सौंदर्यबोध में है, तो इसका दूसरा पहलू अपनी सभ्यता, और संस्कृति के प्रति गहरे लगाव का है। उनके यात्रा-वृत्तों का तीसरा और अत्यधिक प्रबल पहलू पर्यावरण-चेतना का है और चौथा आयाम है मानवीय अनुभूतियों का, जिसमें उल्लास और उछाह भी है, भय और पीड़ा भी है, थकान भी है और साहस भी है। इस सबसे मिलकर उनके यात्रा वृत्त किसी ऐसी कहानी का सा मजा देते हैं जिसमें न जाने कब पाठक खुद हिस्सेदार हो जाता है। मैं कह सकती हूॅं उनकी रचनाओं में विषेशकर यात्रा-वृत्तातों से गुजरना मेरे लिए एक सुखद अनुभव रहा है।   प्रोफेसर और प्रार्चाय डॉ. सुशील उपाध्याय के अनुसार हेमचन्द्र सकलानी बहुत समर्थ संवेदनशील और गहरी दृष्टि के रचनाकार हैं। उनकी रचनाधर्मिता विधाओं के वैविध्य में भी साफ साफ दृष्टिगोचर होती है। समर्पण भाव के साथ सहजता और विस्तृत विवरण के साथ लिखते हैं। इसी कारण उनका लेखन कई संदर्भों में न केवल उल्लेखनीय बल्कि अविस्मरणीय भी बन जाता है। निसंदेह सकलानी जी के यात्रा वृतांत हमारे समय के जीवंत दस्तावेज हैं। उनकी यात्रा वर्णन की शैली में कथातत्व, रिपोर्ताज, और संस्मरण इन तीनों के गुण एक जगह दिखाई पड़ते हैं। उनकी यात्राओं कर ब्यौरा इतना बारीक है कि उन्हें पढ़ते लगता है जैसे किसी इतिहासकार ने अपने शोधपरक नोटस को आप लोगों के लिए प्रस्तुत कर दिया हो। हां यह बात निर्विवाद रूप से कही जा सकती है की हेमचन्द्र सकलानी की यात्रा केन्द्रित सभी पुस्तकें एक ऐसा दस्तावेज हैं जो आने वाले कुछ दशकों के बाद अपनी श्रेणी में दुर्लभ किस्म की सामग्री की तरह देखी देखी जाएंगी।      श्री आंनद बिल्थरे का मत है कि सकलानी जी रचनाएं जीवन के सभी आयामों को छूती नजर आती हैं। उनमें बौद्धिक मुखरता तो है ही अनुभवों का अजस्व स्रोत भी है। युगबोध से जुड़ी सकलानी जी की रचनाएं  दुर्भावनाओं, संकीर्णताओं के बियाबां में अपने बिम्बों, प्रतीकों और जिजीविशा के साथ चेतना-विश्वाश की कंदीलें लेकर चल रही हें। ‘शब्दों को जीवन देने के लिये, शब्दों को अर्थ देने के लिये, शब्दों को ऊर्जा में बदलने के लिये।‘    डॉ शेखर पाठक कहते हैं उनकी रचनाओं से गुजरते उनकी संवेदना और और रचनात्मकता पर आस्था उपजती है। उनका मुहावरा और बिम्ब विधान अपनी अलग तरह का है जिसमें ताजगी है तारतम्यता भी है।    डॉं भगीरथ बड़ोले, उज्जैन यूनिवर्सिटी से अपना मत व्यक्त करते हैं सकलानी जी ने अपनी कविताओं, कहानियों, लेखों, यात्रा संस्मरणों आदि विधाओं में अपनी आदर्श परिकल्पनाओं को बखूबी अभिव्यंजित किया है। अपने समय के यथार्थ के साथ जुड़े रहकर भी वे जीवन में स्वस्थ सामाजिक मूल्यों के पक्षधर रहे हैं। इसीलिए उनकी अधिकांश रचनाएं जहॉं मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा में रत हैं, वहीं युगीन विकारों पर भी भरपूर चोट करती नजर आती हैं। वे केवल साहित्य सृजन की प्रक्रिया से जुड़े हुए व्यक्ति भर नहीं अपितु एक ऐसे शोधी व्यक्तित्व के धनी हैं। जिनका बचपन से ही प्रकृति के प्रति निष्छल अनुराग रहा और जिन्होंने अपने एक एक अनुभावित क्षण को चिंतन के साथ बॉंधने का सफल प्रयास किया। उनका लेखन लेखक की घुम्मकड़ प्रवृति और यायावरी प्रसंगों को ही नहीं दर्शाता अपितु आपाधापी से भरे हुए, वर्तमान विसंगत युगीन संदर्भों के विषय में एक सार्थक चिंतन भी प्रस्तुत करता है। उनकी भाषा सहज होते हुए भी स्तरीय है तथा शैली आकर्षक है।    साप्ताहिक हिन्दुस्तान के संपादक व प्रसिद्व साहित्यकार लेखक हिमांशु जोशी लिखते हैं-यह युग विभेद का है, परन्तु प्रकृति और मनुष्य के बीच सामंजस्य के बिना क्या किसी का स्वस्थ विकास सम्भव है ? सकलानी की रचनाएं बड़ी सम्भावनाओं की ओर इंगित करती हैं। इसमें संदेह नहीं उनकी अपनी अलग सोच है, जीवन तथा जगत को अपने नजरिये से परखने का दर्शन भी, जो समकालीन नवलेखन में उनकी अलग पहचान बनाता है।    प्रसिद्ध वयोवृद्ध साहित्यकार मोहनलाल बाबुलकर लिखते हैं-सामाजिक सरोकारों की दृष्टि से सकारात्मक चिंतन ही समाज और पीढ़ी को सही दिशा दे सकता है। सकलानी जी की रचना धर्मिता का यही यथार्थ है। उन्होंने कविताएं, संस्मरणात्मक विवरण, अन्नवेशण-अनुसंधान परक निबंध, विरासत, व्यंग-विनोद, और माटी की सौंधी सुगंध वाली कहानियॉं लिखी हैं। इनके इस सृजन में चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अपने संयमित और मर्यादित रूप में अभिव्यक्त हुए मिलते हैं।    प्रसिद्ध कथाकार जितेन ठाकुर का कहना है कि सकलानी जी की रचनाएं किसी विषेश काल खंड की रचनाएं न होकर मानवीय सरोकारों की रचनाएं हैं। ये केवल चौंकाती ही नहीं हैं बल्कि अपने समय को विश्लेषित भी करती हैं। इनकी रचनाओं में जीवन को जड़ कर देने वाली स्थितियों का चित्रण भी है और जीवन स्पंदन भी। वास्तव में ये एक दृष्टि सम्पन्न रचनाकार की रचनाएं हैं।    प्रख्यात कवि लेखक पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी कहते हैं सकलानी आज के उस व्यक्ति की तरह अपनी कहानियों में दिखते हैं जिसका एक पैर गॉंव और दूसरा शहर में रहता है। यहॉं कुछ छूटने और टूटने के बीच वर्षों से परसों तक घरों में फैला सन्नाटा भी मिल जायेगा। चिड़ियॉं, तितलियॉं, पौधे और फूल भी जायेंगे। गॉंवों से शहरों तक फैले ऑंगन में बच्चों के अटूट कोलाहल भी मिल जायेगा। सारा रचनात्मक द्वन्द्व किस्सागोई के माध्यम से ऑंखों देखे हाल की श्रेणी में आ जाता है। ‘मैं कहूॅं ऑंखिन की देखी।’ निसंदेह बधाई के पात्र हैं।     डॉ बसन्ती मठपाल का मानना है उनकी रचनाएं तत्वों की दृष्टि से सामान्य और समसामायिक हैं। जिनमें देशकाल और समाज का प्रभावी चित्रण दिखाई पड़ता है। रचनाओं की भाषा शैली सहज सरल व आम बोलचाल की है जिससे समझ में असानी से आ जाती हैं।    पर्यावरणविद्व सुंदरलाल बहुगुणा जी का कहना था कि सकलानी जी ने अपने को कभी अपनी रचनाओं में परम्परागत आयामों तक सीमित नहीं रखा। वह कुछ न कुछ खोजते हुए अपने साहित्य में कविताओं, कहानियों, समसामायिक लेखों से होते हुए हिमालय के अनेक शिखरों,पर्यटक स्थलों, ऐतिहासिक महत्व के स्थानों, वनों, नदियों में और सामान्य लोगों के जीवन तक हो आते हैं।     अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक पदमश्री प्राप्त लेखक श्री रस्किन बॉड का कहना है कि कुछ ही लेखकों का लेखन किसी दस्तावेज की तरह होता है। हेमचन्द्र सकलानी का लेखन हिमालय की संस्कृति से परिचित कराता है। उनकी पुस्तकों के माध्यम से आने वाली पीढ़ी हमारी पुरानी सभ्यता संस्कृति से रूबरू हो सकेगी। उनके लेखन की सराहना की ही जानी चाहिए। उन्होंने अपनी विरासतों को यात्राओं के माध्यम से कविताओं के माध्यम से लेखों, कहानियों के माध्यम से आने वाली पीढ़ी तक पहुॅंचाने का उल्लेखनीय कार्य किया है (विरासत की खोज प्रथम पुस्तक के लोकार्पण के समय)।         डॉ राजकुमारी शर्मा कहती हैं-उन्हें अपने जीवन की साहित्यिक यात्रा में जिस जिस प्रकार के अनुभवों से गुजरना पड़ा, जो जैसे अपनी ऑंखों से देखा, सुना उन सबको पारदर्शिता, ईमानदारी एवं निष्ठा  के साथ अपने साहित्य में जनता के सामने रखने का प्रयास किया। उनका लेखन लीक से हट कर जैसे अलग दस्तावेज है। वर्षों से हेमचन्द्र सकलानी के साहित्य से गुजरते हुए अनुभव हुआ जैसे सूचना प्रौद्योगिकी के चरमोत्कर्श के वर्तमान परिवेशमय वातायन से झॉंक कर एक दृष्टि तलाशती है, उस सृजन काल को जिसमें इतिहास, पुराण, सभ्यता, संस्कृति, पुरातत्व, श्रेष्ठ शिल्प, तथा ललित कलाओं के विविध स्वरूप जो विद्यमान हैं उनके लेखकीय विरासत के रूप में।     डॉ जगदीश व्योम का मानना है अपनी यात्राओं के अनुभवों को सच्चाई के साथ लिखना हर किसी के वश की बात नही है। सकलानी जी ने अपने यात्रा संस्मरणों को बेहद रोचक, एवं शोधपरक दृष्टि से पाठकों के सामने प्रस्तुत किया। राष्ट्रपति के पूर्व सलाहकार (भाषा) प्रसिद्ध लेखक डॉ.परमानंद पॉंचाल का मानना है कि पर्यटन, देशाटन, तीर्थाटन की दृष्टि से सकलानी जी की रचनाएं बहुत उपयोगी हैं और यात्रा साहित्य में उनकी कृतियों का महत्वपूर्ण स्थान होगा। मैं उनकी कृतियों को हिंदी यात्रा साहित्य के क्षेत्र में मूल्यवान उपलब्धियॉं मानता हूॅ। वैसे भी इस क्षेत्र में बहुत कम लिखा गया। क्योंकि यात्रा साहित्य लिखना बड़ा जोखिम भरा और खर्चीला कार्य होता है।     प्रसिद्ध लेखक कवि डॉ गिरिजाशंकर त्रिवेदी जी कहते हैं सकलानी जी की रचनाओं में प्रकृति, पुरातत्व, और लालित कलाओं की अभिरामता, प्रमाण पुष्टता का कसाव, अशुष्क खोजपूर्ण तथ्यों की भास्वरता, विशयावतरण की कौशलमयी कलाकारी और यथा संदर्भ वाग्व्यवहार आदि सब कुछ देखने को मिलता है। प्रसिद्ध लेखक डॉ. अचलानंद जखमोला जी कहते हैं सकलानी जी में सौंदर्यबोध की प्रबल प्रवृति है इसी कारण चतुर्दिक फैली प्रकृति उन्हें बार बार आकर्शित करती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रभावों, प्रतिक्रियाओं, अपनी दृष्टि या संवेदनाओं को महत्व दिया। वे जहॉं भी जाते उस क्षेत्र की प्राकृति छटा, भौगोलिक विवरण, ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि, प्रकृति जनित, आपदाओं, किंवदंतियों, जनजीवन के विवरण, सामाजिक मान्यताओं, स्थलों से जुड़ी हुई पौराणिक कथाओं, ऋतुओं के परिवर्तन आदि चित्रित करने से नहीं चूकते। डॉ. श्यामसुंदर मिश्र कहते हैं उनके यात्रा वृत्तांत तो यात्रा साहित्य की बहुमूल्य निधी ही नहीं बल्कि धरोहर हैं।    भाषा संस्थान की पूर्व निदेषक डॉ. सविता मोहन ने कहा अपने यात्रा साहित्य में सकलानी जी ने घाटियों, दर्रों, मूर्तियों और गुफाओं के माध्यम से अनचीन्हें अतीतों को छूने का प्रयास किया है। मानव सभ्यता के उदय और निरन्तर विकास का बोध इन घाटियों, गुफाओं और मूर्तियों के माध्यम से ही साकार होता है। उनका साहित्य  हमें इतिहास को निकट से देखने का अवसर प्रदान करता है। डॉ. बद्री सिंह भाटिया जी का मानना है नए स्थानों के बारे में की जिज्ञासा मानव मन में सदैव रहती है। सकलानी जी की यात्राओं में जिज्ञासा के साथ कुछ कार्य सबब भी रहे हैं। उन्होंने व्यवस्तताओं के बीच से समय निकाल अनेकों क्षेत्रों की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, अवस्थितियों को देखा जॉंचा-परखा और अपने अनुभवों को पाठकों के लिए खूबसूरत तरीके से लिपिबद्व किया जो प्रशंसनीय है।        डॉ. नागेन्द्र ध्याानी ‘अरूण’ पूर्व उप निदेषक भाषा संस्थान के अनुसार सकलानी जी संवेदनषील व्यक्तित्व के धनी हैं। उनके गद्य में लालित्य है। वे अनुभूतियों में डूब कर अन्तरंग भावों का ऐसा उद्बेलन उठाते हैं कि जीवन की रंगीनियॉं खिलखिलाकर प्रकृति के साथ घुलमिल जाती हैं। उनकी भाषा का सौष्ठव भी बहुत सुंदर है। वह जिस तरह चित्रण प्रस्तुत करते हैं वह उनके कवि हृदय होने का भी प्रमाण है। इसीलिए उनका गद्य, गद्य होते हुए भी पद्य का आनन्द देता है। त्रिवंतपुरम विष्वविद्यालय के प्रो. डॉ वी.पी. मुहम्मद कुंजमेतर उनके बारे में लिखते हैं-सकलानी जी की कृतियों में अपनी संस्कृति के प्रति अदृश्य मोह झलकता है। अपनी धरती अपने लोगों के वर्तमान और भविष्य की चिंता उनकी गद्य-पद्य कृतियों का मूल स्वर है। बहुविद्य लेखनधर्मी सकलानी जी को विशाल पाठक वर्ग प्राप्त है। दरसल वे सार्थक और लोकोपयोगी रचनाकार हैं। अपनी लेखनी के संस्पर्श से सुवासित यात्रा वृत्त, काव्य, कहानी लेखन, लेख आदि सुखद अनुभूतियॉं प्रदान करते रहते हैं। उनकी हिंदी यात्रा का सहज, सरल, मुहावरेदार, एवं सौम्य-बोधगमय स्वरूप इनकी रचना धर्मिता को विषेश आकर्षक बनाता है। प्रसिद्व लेखिका डॉ प्रगति गुप्ता का कथन है कि हेमचन्द्रर सकलानी जी के साहित्य में विरासत की यात्राएं उन सभी बातों को सहेजती हैं जिनका एक यात्रा संस्मरणों में गहरा महत्व होता है। पढ़ते हुए उनके यात्रा संस्मरण पाठक के सामने सचित्र आकर खड़े हो जाते हैं। लेखक की शब्दावली व वाक्य विन्यास बहुत ही सरल और मोहक हैं यही पाठक को पढ़ने के लिए उकसाता हैं।   शहीद वीर केसरीचंद महाविद्यालय की विभागाध्यक्ष साहित्यकार एवं प्रसिद्व लोकप्रिय पत्रिका अपराजिता की संपादिका डॉ. राजकुमारी चौहान भंडारी कहती हैं सकलानी जी की रचनाओं, पुस्तकों, कविताओं, लेखों, यात्रा वृतों का अध्ययन करते मुझे दो बात बहुत अच्छी लगीं एक तो यह कि सकलानी जी का ईमानदारी के साथ विषय को बताना, यही कारण है पाठक स्वयं अपने को उनके साथ चलते पाता हैं। दूसरी सकलानी जी का प्रकृति प्रेमी होना क्योंकि प्रकृति प्रेमी ही इतनी खूबसूरती के साथ यात्राओं का वर्णन कर सकता है। उनके यात्रा वृतांत, यात्रा वृतांत ही नहीं बल्कि विभिन्न शहरों की सभ्यता, संस्कृति, रीति रिवाज,परम्पराओं, इतिहास,भूगोल एवं संग्रहालयों का संग्रह है। यात्राओं का अपना सुखद अनुभव होता है और इन्हीं यात्रा वृतांतों की बदौलत हम प्राचीन वैभवशाली संस्कृति से रूबरू हो पाते हैं। उनके इन निरंतर प्रयासें को देखते हुए निश्चित लगता है कि सकलानी जी की लेखनी पाठकों को विरासत की यात्राओं तक पहुॅंचाने में सफल रही हैं। इस कृति के लिए सकलानी जी को कोटि कोटि धन्यवाद है।         राजकीय गर्ल्स इंटर कालेज की प्रधानाचार्या तथा लेखिका ऊषा भट्ट उनकी कविताओं की जारी सीडी ‘‘वंदना के स्वर’ के बारे में कहती हैं साहित्यकार कवि लेखक संपादक यात्रा वृतांतकार फोटोग्राफर मॉं सरस्वती के वरद पुत्र सकलानी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी की कई कृतियों में से एक ‘‘वंदना के स्वर’’ गीतों की सीडी अति प्रशंसनीय संग्रह है। यह साहित्य जगत में अति महत्वपूर्ण प्रयास के साथ समाज और आने वाली पीढ़ी के लिए अनमोल धरोहर है। इसमें कर्ण प्रिय संगीत होते हुए उच्चकोटी के साहित्यिक शब्दों का अनमोल खजाना है। एक एक शब्द भाव के अनुरूप पिरोया गया है। ऐसा लगता है कि हर जगह साहित्य का हीरा तराश कर अंकित किया गया है।     प्रसिद्ध लेखक श्री राजीव कुमार झा लखीसराय, बिहार से का मानना है-सकलानी जी के यात्रा और पर्यटन ही नहीं साहित्य का दायरा भी काफी विस्तृत है। उनकी यात्राएं भारत भूमि के प्रति उनके मन में बसे गहरे प्रेम को भी प्रदर्शित करती हैं। उनके लेखों में आने वाले हर तरह के प्रामाणिक तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है और वो निरन्तर एक पर्यटक के रूप में अपने जीवानुभवों को समेटने के अलावा देश के पौराणिक स्थलों से जुड़े मिथकों, कथाओं, और ज्ञात अज्ञात तथ्यों रहस्यों पर भी पर्याप्त रोशनी डालते हैं। उनके यात्रा वृतांतों को पढ़ते सच्चे भारत के दर्शन होते हैं और यहॉं भी सुरम्य प्रकृति, परिवेश, आंचलिक जनजीवन, को जानने समझने में मदद मिलती है।     बंगलूर से प्रसिद्व लेखिका, साहित्यकार, समीक्षक उर्मिला श्रीवास्तव ‘उर्मी’ का कहना है श्री सकलानी जी की विरासतों की यात्राओं से गुजरते हुए मुझे बहुत खुशी का अनुभव हुआ। विरासत का अर्थ ही उत्तराधिकार में मिला धन है। सकलानी जी के यात्रा साहित्य से गुजरते लगा उन्होंने जैसे राहुल सांकृत्यायन के रास्ते चलते पग बढ़ाए हैं। हालांकि दोनों की शैली में बहुत अंतर है। उनकी यात्राओं में हमें उस स्थान की ेभौगोलिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक, प्राकृतिक, पृष्ठ भूमि का संगम देखने को मिलता है। सभी यात्रा वृतांतो में ऐसा वर्णन किया है कि वह सजीव चित्र पाठक के सामने उकेर कर रख देता है। यह कहना मेरी दृष्टि में अतिश्योक्ति न होगी कि राहुल सांकृत्यायन जी के उत्तराधिकारी हैं। सकलानी जी जो इस विषय को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी लेखनी अनवरत गतिमान रहे यही मेरी कामना है।     कलकत्ता से प्रसिद्व लेखक कमल पुरोहित जी का कहना है ‘सच कहूॅं तो बहुत कम साहित्यकार होते हैं जो यात्राओं को अपने साहित्य में समेटते हैं। अपनी यात्राओं को वे सिर्फ अपनी आत्मकथा का हिस्सा बनाकर छोड़ देते हैं। लेकिन सकलानी जी ने अपनी यात्राओं को साहित्य का रूप दिया जो अतुलनीय है। वह केवल घुम्मड़ प्रकृति के साहित्यकार ही नहीं हैं अपितु अच्छे कवि भी हैं तभी तो सारेगामापा की विजेता ईशिता विश्वकर्मा ने उनकी रचनाओं को अपने स्वर दिए। उनकी कहानियॉं भी पाठकों का ध्यान आकर्षित करती रही हैं, तभी महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में स्थान पाती रही हैं। यात्राओं का अपना सुखद अनोखा खूबसूरत अनुभव होता है ऐये यात्रा वृतांतों की बदौलत ही हम प्राचीन वैभवशाली संस्कृति को जान पाते हैं। इस दृष्टि से सकलानी जी के लेखन की प्रशंसा की ही जानी चाहिए।    नैनीताल से प्रसिद्व शिक्षाविद लेखक साहित्यकार श्री रमेश चन्द्र द्विवेदी जी का मानना है-मैने अनेकों बार सकलानी जी की कृतियों की समीक्षात्मक आख्या समय समय पर लिखकर अनेक जगह पस्तुत की। बिना उनके किसी अनुरोध के। उनके अंदर गजब का आत्मविश्वास, संकल्प और जीवटता सूत्रबद्व है, विपरीत परिथितियों में भी अविच्छिन्न रूप् से हिमालय की तरह अविचल रहते हैं उन पर नियंत्रण स्थापित किया। उन्होंने अपने आत्म सम्मान को कभी गिरवी नहीं रखा। वे कर्मयोगी हैं और सत्यम् शिवंम सुन्दरम के पोषक हैं। उनके साहित्य में विशेषकर यात्रा वृतांतों में विलक्षण ज्ञान का भंडार समाहित दिखता है। और मैं यह मानता हूॅं कि सकलानी जी महान घुम्मकड़ राहुल सांस्कृत्यायन की श्रेणी के यायावर हैं, मै बिना किसी संकोच के उनके जीवन को उनके साहित्य जगत को देखते कह सकता हूॅं उनका जीवन विशिष्ठ उपलब्धियों से भरा पड़ा है जो औरों को भी प्रेरित करता है। इन सबके अतिरिक्त सकलानी जी की रचनाओं और पुस्तकों पर देश की अनेक महान विभूतियों ने भी उनके बारे में समय-समय पर बहुत कुछ कहा/लिखा जिनमे से केवल कुछ के नाम ही दे पा रहे हैं-इनमें श्री रमेश रमण, डॉ ऊषा यादव, श्री सुरेन्द्र पुण्डीर, श्री शशि भूशण बड़ोनी, श्री महावीर रंवाल्टा, डॉ राजेश्वर उनियाल, डॉ शुभदा पांडे, डॉ शशि गोयल, डॉ. मदन चन्द्र भटट, श्री अशोक अंजुम, श्री अशोक ज्योर्तिमय, ले.कर्नल आशुतोष सिरौठिया, डॉ. राजेन्द्र शंकर भटट, श्री मनोज भटट, श्री केशरसिंह बिष्ट,डॉ. इंदिरा मिश्रा,डॉ. हरिदत्त भटट ’शैलेश’,श्री विष्णु स्वरूप पंकज, श्री प्रकाश पुरोहित जयदीप, श्री पद्मेष बुड़ाकोटी, श्री प्रबोध उनियाल, डॉ. के. विजया, मालती जोशी आदि आदि शामिल हैं।

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