देहरादून। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डोईवाला का अनुबंध निरस्त कराने को लेकर उत्तराखंड क्रांति दल के कार्यकर्ताओं ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर स्वास्थ्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत के यमुना कॉलोनी स्थित आवास का घेराव किया। गौरतलब है कि आंदोलनकारियों ने पहले ही स्वास्थ्य मंत्री के आवास पर आत्मदाह करने का ऐलान किया था। इसी रणनीति के तहत आंदोलनकारी स्वास्थ्य मंत्री के आवास पर पहुंचे थे। आंदोलनकारियों का कहना था कि यदि वार्ता विफल रही तो वह आत्मदाह करने को मजबूर होंगे। आंदोलनकारी बेहद आक्रोशित थे और आत्मदाह करने को लेकर उतारू थे गनीमत यह रही कि स्वास्थ्य मंत्री इससे पहले ही अपने गृह क्षेत्र पौड़ी के लिए रवाना हो चुके थे।
आंदोलनकारियों को समझा-बुझाकर मना लिया गया। उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय मीडिया प्रभारी शिव प्रसाद सेमवाल ने मुख्यमंत्री के निजी सचिव आर एस देव से वार्ता का हवाला देते हुए बताया कि उन्हें दो-तीन दिन में अनुबंध निरस्त कराने का आश्वासन दिया गया है, साथ ही यह बताया गया है कि अनुबंध निरस्त कराने के आदेश जारी हो चुके हैं। इससे पहले स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने अनुबंध निरस्त कराने के प्रति अपनी सहमति जता दी थी। भारी पुलिस बल के बीच काफी देर तक आंदोलनकारी आत्मदाह करने के अपने फैसले पर अड़े रहे। उत्तराखंड क्रांति दल युवा मोर्चा की जिला अध्यक्ष सुलोचना ईष्टवाल और नगर अध्यक्ष बीना नेगी के नेतृत्व में महिलाएं काफी देर तक आत्मदाह की जिद पर अड़ी रही, जिनको महिला पुलिस ने और अन्य अन्य आंदोलनकारी साथियों ने किसी तरह से शांत किया। उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय सचिव केंद्रपाल तोपवाल ने चेतावनी दी है कि यदि दो-तीन दिन के अंदर स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश के अनुसार अनुबंध निरस्त नहीं होता तो वह उग्र कदम उठाने को बाध्य होंगे। यूकेडी जिलाध्यक्ष संजय डोभाल ने बताया कि अनुबंध निरस्त कराने को लेकर उनका आंदोलन निर्णायक है और इसे हर हाल में निरस्त कराया जाएगा। आंदोलनकारियों के साथ केंद्रीय संगठन मंत्री संजय बहुगुणा, मंजू देवी रावत, सरोज रावत, शालिनी रावत, सीमा रावत, आशा पुंडीर, किरण मौर्य, ललिता मौर्य, कलावती नेगी, मीना नौटियाल, निर्मला भट्ट, तारा देवी यादव, बीना नेगी, लीलाधर नैथानी आदि दर्जनों यूकेडी कार्यकर्ता और स्थानीय लोग शामिल थे।
यह है मामला
जुलाई 2017 मे डोईवाला के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को प्रो बोनो एग्रीमेंट के तहत हिमालयन अस्पताल के हवाले कर दिया गया था। तबसे डोईवाला अस्पताल की हालत खराब हो गयी। अनुबंध की शर्तों का पालन नही किया गया और न ही सरकार की केंद्रीय मैनेजमेंट कमेटी ने इसकी समीक्षा करने की जरूरत समझी, जबकि अनुबंध के अनुसार हर महीने इसकी समीक्षा की जानी चाहिए थी। आंदोलन का संज्ञान लेकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा मनोज उप्रेती ने अनुबंध निरस्त कराने के लिए संस्तुति उच्चाधिकारियों को भेज दी थी।