लेखक
श्री धर्मानंद सारंगी
महानिदेशक (सड़क विकास) और
विशेष सचिव,
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय
बिदुर कांत झा
निदेशक (नवीन प्रौद्योगिकी),
सड़क परिवहन और राजमार्ग
मंत्रालय
देश के दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए सड़कों का ऐसा बुनियादी ढांचा बनाना
आवश्यक है जो मजबूत हो और परिवर्तन को वहन करने में सक्षम हो। सड़कों का बुनियादी ढांचा
सुरक्षा, विभिन्न सामग्रियों की आपूर्ति में दक्षता और उपयोगकर्ताओं की सुविधाओं के साथ-साथ तेज़
आवागमन की सुविधा प्रदान करने के लिए आवश्यक है और इसे लंबे समय तक टिकाऊ भी होना
चाहिए। परंपरागत रूप से, सड़क निर्माण का काम प्राकृतिक संसाधनों जैसे पत्थर, उपजाऊ मिट्टी, रेत
आदि की कमी, पेड़ों की कटाई, ग्रीन-हाउस गैसों के उत्सर्जन इत्यादि से जुड़ा हुआ है। सतत विकास के
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन समस्याओं को सुलझाना आवश्यक है।
उदाहरणस्वरूप, एक लेन-किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए लगभग 20,000 टन अच्छी गुणवत्ता वाले
पत्थरों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, यह भी अनुमान लगाया गया है कि प्रत्येक लेन-
किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण से प्रति वर्ष 24-30 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन 1
होता है। हरित भविष्य और शून्य उत्सर्जन के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अंतर्गत, भारत ने 2070 तक
‘नेट जीरो’ हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसलिए, प्राकृतिक संसाधनों के
सीमित भंडार को संरक्षित करने के साथ-साथ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए,
माननीय प्रधान मंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व और माननीय मंत्री, सड़क परिवहन और राजमार्ग के सक्षम
नेतृत्व में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) ने निम्नलिखित सिद्धांतों के आधार
पर राजमार्गों की अपनी योजना, डिजाइन, निर्माण और रखरखाव की रणनीति बनाई है: नई सामग्रियों, प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सामग्री की बचत, तेज गति से और
टिकाऊ निर्माण के अनुकूल डिजाइन तैयार करना, इत्यादि।
1 टेरी की रिपोर्ट
- प्राकृतिक संसाधनों की खपत कम करना
- स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों पर ध्यान केंद्रित करना
- पर्यावरण के अनुकूल वैकल्पिक सामग्री का उपयोग
- अपशिष्ट पदार्थों में कमी लाना, उनका पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण
- जल, मिट्टी, वनस्पतियों और जीवों आदि का संरक्षण।
- हरित निर्माण पद्धतियों को अपनाना
- कुशल और पर्यावरण अनुकूल निर्माण उपकरणों और मशीनरी का उपयोग
- ऊर्जा का संरक्षण
- भूमि पर आकर्षक पार्कों और अन्य दृश्यों का निर्माण और वृक्षारोपण
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, जल प्रदूषण, परिवेश में शोर के स्तर, मृदा क्षरण और प्रदूषण की
रोकथाम और नियंत्रण, वाष्पशील, ठोस और तरल अपशिष्ट का प्रबंधन और निपटान - जीवन-चक्र लागत के आधार पर मूल्यांकन
सतत विकास के लिए विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में ऐसी सामग्रियों, प्रौद्योगिकी,
प्रक्रियाओं के उपयोग में कुछ ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की गई हैं, जिनका विवरण संक्षेप में इस
प्रकार बताया जा सकता है: - लंबे पुलों के लिए अति-उच्च प्रदर्शन वाले फाइबर प्रबलित कंक्रीट (यूएचपीएफआरसी) का उपयोग
(यूएचपीएफआरसी के साथ 65 पुलों का निर्माण हुआ/चल रहा है)। - प्रसंस्कृत स्टील स्लैग- (2.6 मिलियन मीट्रिक टन प्रयुक्त)
- बिटुमिनस मिक्स में अपशिष्ट प्लास्टिक (2830 किमी सड़क का निर्माण)
- नगरपालिका लैंडफिल की निष्क्रिय सामग्री (2.4 मिलियन मीट्रिक टन प्रयुक्त)
- बांस क्रैश बैरियर (8.5 किमी)
- उखाड़े हुए पेड़ों को दोबारा लगाना (70,000)
- मृदा स्थिरीकरण, प्रीकास्ट कंक्रीट तत्व, उच्च प्रदर्शन वाले बिटुमिनस मिक्स, विभिन्न प्रकार के
जियोसिंथेटिक्स, कॉयर/जूट जैसे प्राकृतिक मैट, मौजूदा बिटुमिनस फुटपाथों का पुनर्चक्रण, पूर्ण गहराई
वाले क्षेत्रों की पुनर्रचना, सुरंग निर्माण/भूस्खलन सामग्री का पुनः उपयोग, निर्माण और विध्वंस की
अपशिष्ट सामग्री का उपयोग, जैव-बिटुमेन, प्रबलित कंक्रीट के लिए स्टील बार के प्रतिस्थापन में
फाइबर प्रबलित पॉलिमर रीबार आदि सामग्री/प्रौद्योगिकी का उपयोग विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्ग
परियोजनाओं में अलग-अलग पैमाने पर किया जा रहा है।
आमतौर पर, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा विकसित 135 किलोमीटर लंबे ईस्टर्न
पेरिफेरल एक्सप्रेसवे को ग्रीन हाईवे परियोजना के लिए आदर्श माना जा सकता है क्योंकि यह कई
तरीकों से कार्बन फुटप्रिंट यानी जहरीली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन को कम करता है:
- सौर ऊर्जा का उत्पादन: 4 मेगावाट क्षमता।
- पौधों की ड्रिप से सिंचाई
- हर 500 मीटर पर वर्षा जल संचयन की व्यवस्था की गई है।
- लगभग 1 करोड़ बीस लाख घन मीटर फ्लाई ऐश का उपयोग किया गया है।
- व्यापक रूप से वृक्षारोपण: 2.6 लाख पेड़ लगाए गए
विश्व बैंक की सहायता से कार्यान्वित की जा रही ग्रीन नेशनल हाईवे कॉरिडोर परियोजनाएं
(जीएनएचसीपी) भी टिकाऊ प्रौद्योगिकियों के उपयोग का एक और उदाहरण हैं। जीएनएचसीपी के
अंतर्गत 23 निर्माण पैकेजों में राष्ट्रीय राजमार्गों के सात भागों पर काम शुरू किया गया है, जिनकी कुल
लंबाई 783 किलोमीटर है। परियोजना में कॉयर/जूट मैट, हाइड्रोसीडिंग, हरित पट्टियों के साथ आपस में
जुड़े चेन मेश, बांस के पौधे लगाने, विशेष प्रकार की वेटिवर घास, हेज ब्रश लेयरिंग, पुनर्चक्रण आदि
हरित सामग्री/प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय कार्बन फुटप्रिंट, मजबूती, स्थायित्व और सेवा क्षमता में बचत के
संदर्भ में ऐसी सामग्रियों और प्रौद्योगिकी संबंधी कदमों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए
लगातार प्रयास कर रहा है। वहीं वर्तमान में उपयोग की जा रही या जिन सामग्रियों, प्रक्रियाओं और
प्रौद्योगिकी के उपयोग के प्रयास किए जा रहे हैं उनके प्रदर्शन को एक साथ जोड़कर देखने की
आवश्यकता है, जबकि नई सामग्रियों की पहचान करने और उन्हें विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध
तरीके से निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।